top of page

क्रांतिदूतम

an upcoming book 

क्रांति की वही मशाल प्रकाश  कर  सकती है 

जो  करुणा और त्याग के तेल से जल  रही हो

क्रोध प्रतिरोध के ईंधन से जलने वाली मशाल

प्रकाश नहीं करती, आग लगाती है I

                                                    - सत्यन

भारत स्वच्छता की ओर .....

प्रिय पाठक,​

सत्य एक है, सत्य तक पहुंचने के मार्ग अनेक l सेवा का मार्ग सबसे सुगम एवं सुलभ मार्ग है, ऐसा मेरा विश्वास है  ! स्वच्छता अपने व्यापक अर्थ में मानव सेवा का सहज एवं सुलभ साधन है I मैं इस पुस्तक के माध्यम से सत्य को जानने की बात ज़रूर कर रहा हूँ, सत्य को जानने का दावा नहीं I सत्य एक है; फिर भी मेरा सत्य मेरा है, आपका सत्य आपका है I

सत्य सर्व व्यापक है ! गंदगी में भी सत्य है, सफाई में भी सत्य है ! गंदगी का सत्य अस्थाई है, गंदगी का सत्य यह है कि उसे सफाई में तब्दील होना है I सफाई का सत्य स्थाई है, सफाई का सत्य यह है कि सफाई में सृष्टि-चक्र के संचालन की शक्ति समाई है I

मनुष्य जिस सत्य के साथ अपनापन महसूस करता है, उसके जीवन में उस सत्य का सत्यापन होने लगता है I मैंने जिस सेवा-साधन से सत्य को अनुभूत किया है, वह साधन इतना ही स्वच्छ रहा है, जितना साध्य ! सेवा ही अध्यात्म का सार है : सेवा में मनुष्यता के कष्टों का निवारण है, सेवा में मनुष्य का निर्माण है, सेवा में मनुष्य का निर्वाण है !

अतः मानवता के कष्टों के निवारण द्वारा ही मानव का निर्माण एवं निर्वाण संभव है l बेशक हम आधुनिक मनुष्य के लिए जीवन की सार्थकता आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर होने में है, लेकिन इस सार्थकता का स्रोत आर्थिक नहीं, आत्मिक है l यदि हममें आत्मीयता का यह बोध कि सृष्टि की जड़ और चेतन सभी वस्तुयें एक दुसरे से आत्मिक रूप से जुड़ी हैं शून्य होने लगे, तो हम आर्थिक रूप से लम्बे समय तक समृद्ध नहीं रह सकते ! परिस्थितिकी असंतुलन से जनित बीमारियां एवं महामारीयां हमारे एक तरफे आर्थिक विकास को तहस-नहस कर देगी !  अतः चिर स्थाई समृद्धि वह है जो समाज में विषमता को कम कर समता में वृद्धि करें ! मानव मात्र के कल्याण हेतु स्वच्छता व पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे बढ़े l  

मेरा एक सत्य में अटूट विश्वास है कि स्वच्छ एवं स्वस्थ विश्व के निर्माण में ही मानव मात्र का कल्याण निहित है ! विश्व को स्वच्छ, स्वस्थ एवं समृद्ध बनाने में अपना योगदान दिए बिना मनुष्य का निर्माण एवं निर्वाण संभव नहीं, अर्थात् मनुष्यता की सेवा के बिना मनुष्य मनुष्य नहीं बन सकता, और नहीं मानवीय सर्वोच्च आदर्श स्वतंत्रता (जिसे भारतीय संस्कृति में निर्वाण व मोक्ष कहते है) को प्राप्त हो सकता है !

अतः यदि मेरा सत्य आप पाठकों की पूछ, परख, सत्परामर्श व सहयोग द्वारा पुष्ट होता है,तो हमारे सत्य के योग से जो सामूहिक सत्य स्थापित होगा, उसे स्वच्छता-योग की संज्ञा भी दी जा सकती है I पुरुष और प्रकृति के मध्य इस तालमेल व योग की भारत को ही नहीं, विश्व को सख्त ज़रुरत है l यह सत्य (स्वच्छता-योग) भारत के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक योग के अष्टांगों में प्रमुख यम और नियम से भिन्न न होगा, जिनकी आधुनिक भारत में उतरोतर अनदेखी हुई है I नतीजतन भारत भारत नहीं, बल्कि बाहर से भीतर तक भ्रष्ट हुआ है  I

कालांतर में यह सत्य समय के हाथों स्वयं सत्यापित होने लगेगा I यह सत्य मनुष्य की अंतिम सत्य के दर्शन करने में सहायता करेगा I स्वच्छता मानव-जाति की सामूहिक चेतना पर अनंतता के लिए अंकित हो जायेगी ! विश्व-कल्याण के इस महान कार्य में भारत अपनी विश्व-गुरु होने की भूमिका निभाएगा, ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है !            —सत्यन

​​Call us:

+91 98170 61520

+91 82196 62347

​Find us: 

Shiksha Kranti, Global Education Sensitization Society,

C/O Satyan School of Languages, Opp. Degree College Gate

Rajgarh Road, Kotlanala, Solan 173212

bottom of page