- Satyan
यदि मेरे इस कथन से भड़ास ध्वनित न हो रही हो (जैसा कि अक्सर होने का खतरा बना रहता है जब हम 'लेखक' समाज के किसी स्याह पक्ष को उजागर करने की कोशिश करते हैं) तो मैं विनम्रता से यह कहना चाहूंगा कि हम शिक्षित लोगों ने प्रकृति को प्रदूषित एवं मानव संस्कृति को विकृत किया है ।
मानव सभ्यता का प्रदूषण हो या पर्यावरण का प्रदूषण; प्रदूषण फैलाने कोई कहीं बाहर से नहीं आया, इसे आज के हम शिक्षित जनों ने फैलाया है ! हम शिक्षितों ने अपनी आंखों पे अपनी अपनी महत्वकांक्षाओं की पट्टी बांधकर अपने चारों ओर प्रकृति के शोषण को अनदेखा किया है ! वरन एक शिक्षित व्यक्ति से बेहतर यह कौन जान सकता है कि हमारा आधुनिक विकास मॉडल यदि प्रकृति के सह-अस्तित्व के सिद्धांत को नकारता रहा, धरती पर पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं के जीने के अधिकार को समाप्त करता रहा, यहां की जैविक विविधता को असंतुलित करता रहा, तो ऐसा करना देर-सवेर समूची मानव जाति के लिए घातक
सिद्ध होगा ! धरती पर जीवन के अस्तित्व के लिए विनाशकारी ही साबित होगा ! दुनियाभर के शिक्षित एवं जागरूक नागरिकों ने लगभग एकसे 'वैश्विक आर्थिक संरक्षण में पर्यावरण क्षरण' की या तो अनदेखी की है या इसके विरुद्ध आवाज़ उठाने में एक जुटता नहीं दिखाई है ।
बेशक आज खुलकर हम यह स्वीकार न करें कि कोरोना महामारी मा
नव निर्मित आपदा है, लेकिन हकीकत तो यही है कि परोक्ष और अपरोक्ष रूप से मानव ने ही इस संकट को जन्म दिया है । मानवीय आहार, विहार और व्यवहार ने कोरोना वायरस का जानवर से मनुष्य में आने की यात्रा को सुगम बनाया है । उदाहरणतः कोरोना संक्रमित व्यक्तियों के शुरुआती सम्बंध चीन की उस वैट मार्किट एवं वाइल्ड लाइफ मार्किट से पाए गए हैं, जहां बेज़ुबानों को जिंदा मारा बेचा और खरीदा जाता है !
तो क्या हम इस तथ्य से मुँह मोड़ सकते हैं कि हमारे आधुनिक विकास मॉडल एवं जीवन शैली ने गैर-मानव जीवों का न केवल धरती पर हक छीना है, बल्कि उनके अस्तित्व को जड़ से खत्म करने की निर्दयता को भी जन्म दिया है । अब जब मनुष्य जीवन के अस्तित्व पर आक्रमण हो र
हा है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि मानों गैर-मानव जीवों की दुनिया मानव से बदला ले रही हो !
पर्यावरण प्रदूषण ने मनुष्य की रोग से लड़ने की क्षमता को कम किया है, वायरस को अधिक घातक एवं मारक बनाया है ।
समय रहते हम शिक्षितों को प्रकृति के क्षय को रोकने के लिए आगे आ
ना होगा । वर्तमान और भविष्य में कोरोना जैसी विभीषिका से मानवता की रक्षा करनी होगी ! यह काम हम उस भारत भूमि से बखूबी कर सकते हैं , जिस भारत भूमि से टैगोर जैसे महान शिक्षा विद एवं नोबल पुरस्कार विजेता पैदा हुए हैं, जिन्होंने अपने सर्व कल्याणकारी साहित्य में शिक्षा को पर्यावरण परक होने पर अधिक से अधिक बल दिया है । रविंद्र नाथ टैगोर ने उचित ही कहा है कि "उच्चतम शिक्षा वह है, जो हमें न केवल जानकारी देती है, बल्कि जो हमें जीवन में सभी जीवों के साथ सामंजस्य के साथ रहना सिखाती है" । अतः समय रहते हम प्रकृति के संकेत समझे और पर्यावरण प्रदूषण एवं प्रकृति क्षरण के विरुद्ध अपनी आवाज बुलुन्द करें, ताकि इसकी गूंज विश्व राजनीतिक नेतृत्व के कानों तक पहुंचे, जो महामारी के दौरान और उपरांत पर्यावरण संरक्षण की कीमत पर अपने-अपने आर्थिक साम्राज्यों की सीमाओं को बढ़ाने में लगा है, या शीघ्र ही लगने वाला है ! -सत्यन
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