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स्वच्छता ही सेवा है

"योग का परम लक्ष्य आत्म संयम है । यदि हम विचार में पवित्र तथा कर्म में कुशल है; तो हमारा अपनी इंद्रियों और मनोवेगों पर सचेत नियंत्रण होता जाता है ! हमारे भीतर बिना किसी साधना के योग घटित होने लगता है !कर्म स्वच्छ हो तो फिर "योगः कर्मसु कौशलम" ! कर्म में कुशलता ही योग है !"

                                                                                                     -सत्यन

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