वो कौन थी I A Short Story
Updated: Jun 3, 2020
- Satyan
"सांयकाल होने लगा था। मैं और कैलाश शर्मा अपने स्वच्छताग्रह संस्थान की गैलरी में बैठे गुफ़्तगू में गहरे डूबे थे । समय और स्थान की सुध-बुध खो सी चुके थे ।
"स्वयं को जानने की राह चलते रहना ही जीवन है ! स्व मनुष्य के सबसे नज़दीक शून्य दूरी पर है, और मनुष्य है कि अपने स्व से ही कोसो मील दूर........."
इससे पहले कि मैं अपनी बात धारा प्रवाह से पूरी कर पाता, अचानक 'किसी' ने मेरे ध्यान को विषय वस्तु से हटा, मेरी वाणी पर पूर्ण विराम सा लगा दिया ! मानों किसी ने अविरल बहती प्राचीन नदी के प्रवाह को रोक कर आधुनिक बाँध में कैद कर लिया हो !
मैं एकाएक सड़क की ओर नीचे देखने लगा । दिमाग में विद्युत की गति से कुछ चलने लगा "ऐसा क्या हुआ, जिसने मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लिया; न कुछ दिखाई दिया, न कुछ सुनाई पड़ा ?"
"सर, क्या हुआ" कैलाश कुछ धीमे स्वर में बोले ।
"कुछ नहीं" कहते हुए मैं उनकी ओर मुड़ने ही वाला था कि मैंने एक बिजली की तरह चमकते चेहरे को मेरी ओर देखते हुए पाया जो बिना कहे बहुत कुछ कह गया !
"सत्य मुखर भी होता है, और मौन भी । सत्य जब मुखरित होता है, तो वह अपनी सत्य-पुष्टि के लिए हमसे तथ्यों एवं प्रमाणों के उल्लेख की अपेक्षा करता है; लेकिन जब सत्य मौन हो, तो वह स्वयं सिद्ध हो जाता है । उसे न किसी शब्द-शास्त्र की; न किसी भक्ति-ज्ञान की; न किसी त्याग-तप की, और न ही किसी साधना-सिद्धि की ज़रूरत पड़ती है !" मैं एक तरफ कैलाश जी से वार्तालाप करते-करते सत्य के मौखिक पक्ष को सुना रहा था, और दूसरी तरफ सत्य के मौन स्वरूप को महसूस कर रहा था......!
एक चेहरे की मौन मुखाक्रांति मुझे भीतर तक छूँ गई थी । ऐसा प्रतीत हुआ मानों कोई दिव्य पवित्रता मेरे सामने दैहिक रूप में एक झलक दिखा कर चली गई हो ! मुखड़ा पुरुष था या स्त्री थी कोई भान न रहा ! हाँ, यह ख्याल न जाने मन में क्यों अचानक आया कि ऐसी पवित्रता और दिव्यता केवल एक देवी (स्त्री) में ही हो सकती है ! स्त्री पुरुष से अधिक नैतिक एवं निपुण होती है ! ऐसा सोचने का मेरा पास कोई आधार भी न था !
मेरा और कैलाश का "स्पीकिंग सेशन" सांयकाल में ढ़लते हुए दिन की तरह अंतिम चरण तक पहुँच गया। शीघ्र ही हम सहमति और असहमति के खट्टे-मीठे पल अपनी-अपनी स्मृति की झोली में भर, अपने -अपने घर की ओर चल पड़े !
अन्य सेशनों की तुलना में आज मुझे मेरी झोली में कुछ अलग होने का आभास हो रहा था। यह प्रश्न मेरे दिमाग में रह रह कर कौंध रहा था 'वो कौन थी?' मेरे अंतर्मन का अथाह आकाश एक आत्मीयता की निगाह से भर गया था ! अंतर्मन में किसी प्राप्ति की तृप्ति थी, पर मन किसी से मिलने के लिये अधीर हुआ चला था !
क्या यह महज़ एक संयोग था या फ़िर मेरी ध्यान की एकाग्रता में कोई अयसकीय आग्रह ? सत्य है कि सड़क की ओर नज़र दौड़ाते ही मैं यह विचार मेरे दिमाग में कौंध रहा था कि मुझे कोई देखने वाला है; लेकिन यह रहस्य ही था कि लोग सड़क पे आ और जा रहे थे, तो भीड़ में से क्यों एक युवती ने ही मुझे पीछे मुड़ कर देखा था । जिन्हें पहले न देखा, न सुना और न ही जाना था !
दो प्रियजनों के बीच में एक समय में एक ही विचार के संचार होने की घटना (टैलीपैथी) को मैं पहले कई बार अनुभव कर चुका था, लेकिन यहां बात कुछ और थी ! हम एक दूसरे से कभी नहीं मिले थे !
<